उत्तराखंड सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए नई टाउनशिप विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है। इस कदम से 1792 “भूत गांवों” को फिर से बसाने और पहाड़ी क्षेत्रों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व को मजबूत करने का प्रयास किया जाएगा।
पलायन की चुनौती और सरकार का नया कदम
उत्तराखंड अपने 24वें स्थापना दिवस की ओर बढ़ रहा है, लेकिन विकास के कई आयामों को छूने के बावजूद राज्य एक बड़ी चुनौती से जूझ रहा है – पहाड़ी इलाकों से हो रहा पलायन। इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। देहरादून स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त नई टाउनशिप विकसित करने की योजना पर काम कर रही है।
राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों, विशेष रूप से अल्मोड़ा, टेहरी और पौड़ी जिलों में स्थाई पलायन की दर सबसे अधिक देखी गई है। इन क्षेत्रों में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्त सुविधाओं के कारण लोग पहाड़ छोड़कर मैदानी इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं।
पलायन के आंकड़े चिंताजनक
उत्तराखंड पलायन आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच राज्य में पलायन की स्थिति गंभीर रही है। वर्तमान में उत्तराखंड में 1,792 “भूत गांव” (घोस्ट विलेज) हैं, जहां से लोगों ने पलायन कर लिया है। इस पलायन का असर राज्य के जनसांख्यिकी पर गहरा पड़ रहा है।
राज्य के नौ पहाड़ी जिलों से लोगों का तेजी से पलायन हो रहा है, जबकि देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जैसे चार मैदानी जिलों में जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है।
नई टाउनशिप योजना के मुख्य बिंदु
सरकार की नई टाउनशिप योजना के अंतर्गत निम्नलिखित पहलों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा:
- पहाड़ी क्षेत्रों में आधुनिक बुनियादी ढांचे का विकास
- रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन
- बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना
- होम स्टे जैसे पर्यटन-आधारित उद्यमों को बढ़ावा
- गांवों को डिजिटल रूप से जोड़कर दूरस्थ कार्य के अवसर उपलब्ध कराना
विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ पत्रकार राकेश चंद्रा, जिन्होंने उत्तराखंड के पलायन पर शोध किया है, का मानना है कि “मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते लोग पलायन कर रहे हैं। जल, जंगल, जमीन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को यदि पहाड़ में उपलब्ध करा दिया जाए, तो पलायन रुक जाएगा।”
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज (एसडीसी) के संस्थापक अनूप नौटियाल ने चेतावनी दी है कि, “यदि अगली परिसीमन से पहले इस पलायन को रोकने के लिए ठोस उपाय नहीं किए गए, तो पहाड़ों का राजनीतिक अस्तित्व कमजोर हो जाएगा।”
रिवर्स माइग्रेशन की संभावनाएं
सरकार के प्रयासों से पहले भी होम स्टे जैसी पहलों से कुछ हद तक पलायन के आंकड़ों में गिरावट देखी गई है। नई टाउनशिप योजना न केवल पलायन को रोकेगी बल्कि रिवर्स माइग्रेशन को भी प्रोत्साहित करेगी, जिससे वे लोग जो पहले पहाड़ छोड़कर जा चुके हैं, वापस अपने गांवों में लौट सकेंगे।
होम स्टे जैसे प्रयासों से स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है और ग्लोबलाइजेशन का रास्ता खुला है, जिससे युवाओं के लिए नए रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं।
आगे की राह
उत्तराखंड के 24 साल के इतिहास में पलायन एक गंभीर चुनौती रही है, जिसका स्थाई समाधान अभी तक नहीं मिला है। नई टाउनशिप योजना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार का मानना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास और रोजगार के अवसरों के सृजन से न केवल पलायन रुकेगा बल्कि राज्य के समग्र विकास को भी गति मिलेगी।
पहाड़ी क्षेत्रों से जारी पलायन राज्य के जनसांख्यिकी संतुलन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रभाव डाल रहा है। सरकार की इस पहल से अपेक्षा है कि पहाड़ी क्षेत्रों का विकास होगा और “देव भूमि” उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और विरासत का संरक्षण सुनिश्चित होगा।